Sunday 30 December 2018

VIJAY GADH :- A MYSTERIOUS FORT

Vijay gadh is a historic heritage fort of 400 ft. high in sonebhadra district of uttar pradesh, a state of india. Half of the area is surrounded by kaimur's step hills.
According to historians, it was constructed in the fifth century by the col kings. This 400 feet high reclues is 30 kilometers from robertsgujs district in MOUKAL village.
It's main feature is cave painting, inscriptions, sculptures and perennial ponds. At the main gate is the site of a Muslim saint Syed jain ul Aabdin Mir sahib. Who is famous by the name of Hazrat Miran sahib baba. The urs fair is organized every year in the month of April. There are two lakes near this fort which are known as RAM SAGAR and MIR SAGAR  among them are the '''RUNG MAHAL" where beautiful etching is engraved.
The place where waters comes from here very much a matter of surprise,despite the fact that the secluded is in a high attitude. Two main reservoirs,Ram sagar and Mir sagar water never dries, Which is a mystery only. The depth of the RAMSAGAR has not been realized even today. From this lake the KANWARIYA water is filled with water to offer to water to SHIVALINGS.
This fort build in MAUGAON can also be reached on foot from the road leading up to the stairs. There is also some rare relics of Mahatma Buddha . According to historians,it was constructed in the fifth centuary by the COL KINGS. King CHET SINGH of kashi was occupying this fort till this British period. It is mentioned by the chandels that assuming the rule of the king here.

This is the same fort on which the great Novelist DEVIKINANDAN KHATRI wrote the CHANDRAKANTA novel. Princess CHANDRAKANTA was the only princess of vijay vadh . According to the story of novel  veer VIRENDRA SINGH, the prince of NAWGADH (CHANDAULI) had fallen in love with princess CHANDRAKANTA of vijaygadh. And the animosity between the two royal family was famous.

Saturday 29 December 2018

विजयगढ़ एक रहस्यमयी किला


विजयगढ़ किला
विजयगढ़ किला , भारतवर्ष के एक राज्य उत्तरप्रदेश के सोनभद्र ज़िले में स्तिथ 400 फिट ऊंचा एक ऐतिहासिक धरोहर है। इसका आधा क्षेत्र कैमूर की खड़ी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इतिहासकारो के मुताबिक इसका निर्माण पांचवी सदी में कोल राजाओं के द्वारा हुआ था। 400 फिट ऊंचे इस रहस्मयी किला मऊकला ग्राम में रॉबर्ट्सगंज जिले से 30 किलोमीटर की दूरी पर है।
राम सागर सरोवर
इसकी मुख्य विशेषता इसमे बने हुए गुफा चित्र, शिलालेख, मूर्तियां और बारहमासी तालाब है। मुख्य द्वार पर एक मुस्लिम संत सैय्यद जैन उल आबदीन मीर साहिब का स्थल है। जो हज़रत मीरान साहब बाबा के नाम से विख्यात हैं। यही पर प्रत्येक वर्ष उर्स मेला का आयोजन अप्रैल माह में किया जाता है। इस किले के नज़दीक दो सरोवर है जिन्हें 'राम सागर' और 'मीर सागर' के नाम से जाना जाता हैं। जिनके मध्य "रंग महल " है जिनमे खूबसूरत नक़्क़ाशी उकेरे हुए है।  
यहाँ के सप्त सरोवर अत्याधिक ऊँचाई पर होने के वाबजूद यहाँ पर जल कहाँ से आता है आश्चर्य का विषय है। दो मुख्य सरोवर राम सागर और मीर सागर जा जल कभी नही सूखता है। जो एक रहस्य ही है। रामसागर की गहराई का अंदाज़ा आज भी नही हुआ है। इसी सरोवर से काँवरिया जल भर कर शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं। 
मउगांव में बने इस किले तक सड़क के अतिरिक्त सीढ़ीनुमा रास्ते से भी पैदल जाया जा सकता हैं। यहाँ महात्मा बुद्ध के कुछ दुर्लभ अबशेष भी है। इतिहासकारो के अनुसार इसका निर्माण पांचवी सदी में कोल राजाओ ने करवाया था। काशी के राजा चेत सिंह ब्रिटिश काल तक इस किले पर काबिज थे। चंदेलों के द्वारा यहाँ का राज-काज संभालने का उल्लेख है।
यह वही किला है जिस पर महान उपन्यासकार देविकिनन्दन खत्री ने चंद्रकांता उपन्यास लिखा था। राजकुमारी चंद्रकांता विजयगढ़ की ही राजकुमारी थी। और इस उपन्यास के कहानी के अनुसार नवगढ़ (चंदौली) के राजकुमार (नवगढ़-विजयगढ़ के नज़दीक है) वीर वीरेंद्र सिंह को विजयगढ़ के राजकुमारी चंद्रकांता से प्रेम हो गया था। तथा दोनों राजपरिवारों के बीच दुश्मनी विख्यात थी।
स्थानीय निवासियों के अनुसार इस किले के अंदर एक और किला है।जहाँ अकूत खज़ाना गड़ा पड़ा हुआ है। मध्य रात्रि को मशाल लेकर किले की और जाते हुए लोगो को देखा गया है। 


रख रखाव के अभाव में इस अमूल्य धरोहरों को खंडहर में बदलते देर नही लगेगी। पुरातत्व विभाग इस किले की महत्ता और महिमा को धयान में रखते हुए इसे सरश्चित करने का प्रयास करे।
 यहाँ पर ट्रेन और रोडवेज (सरकारी बस) के नाध्यम से पहुंचा जा सकता है।  
रॉबर्ट्सगंज (वर्तमान नाम सोनभद्र) निम्नलिखित ट्रैन के द्वारा जाया जा सकता है।
1. स्वर्णजयंती एक्स. 12874 सप्ताह में तीन दिन नई दिल्ली से रांची 
2. त्रिवेणी लिंक एक्स. 14370 बरेली से सिंगरौली प्रतिदिन
3. सिंगरौली इटरसिटी एक्स. 13345 वाराणसी से सिंगरौली
4. टाटानगर एक्स. 18102 जम्मूतवी से टाटानगर वाया करनाल, अलीगढ़ से होते हुए जाती है।
5. इलाहाबाद चोपन यात्री गाड़ी 53346 :- इलाहाबाद से चोपन 

इसके अलावा सरकारी रोडवेज बस के द्वारा वाराणसी और इलाहाबाद से रॉबर्ट्सगंज अथार्त सोनभद्र पहुँचा जा सकता है। और यहाँ से 30 किलोमीटर की यात्रा प्राइवेट टैक्सी से जाया जा सकता है।

Monday 24 December 2018

शब्दों के जादूगर:- विमल रॉय


परिणीता" में विमल रॉय ने बंगाल के सादी परिवारिक जीवन की सुगंधित खुशबू से एक परिवार की योग्यता और सार्वभौमिकता को आनन्द से फ़लीभूत किया। " परिणीता " में अशोक कुमार और मीना कुमारी की जोड़ी एक अनिवर्चरनिय है। जब किसी भी भाषाओं में शब्द सीमाओं में घिरकर असहाय और विवश हो जाता है वहाँ पर विमल रॉय ठहर कर तन्मयता से फ़िल्म का अनुसंधान करते है। यह इसलिए भी है कि किसी भी भाषाओं के शब्द का सम्मान करने वाला उनसे बढ़कर कोई फिल्मकार सिनेमा जगत में नही हुआ।
विमल राय का जन्म 12 जुलाई,1909 को सापुर ढाका जिले पूर्वी बंगाल और आसाम में हुआ था। विमल रॉय ने निर्माता निर्देशक बी. एन सरकार की न्यू थिएटर्स (कोलकाता) की कंपनी में बतौर कैमरामैन अपनी फिल्मी जीवन की शुरुआत की थी। स्वभाव से शांत रहने वाले बिमल रॉय को फ़िल्म पत्रकार बुर्जोर खुर्शीदजी करंजिया ने ‘साइलेंट थंडर’ की उपमा दी थी. इतालवी नव-यथार्थवादी सिनेमा से प्रेरित होकर, विटोरियो डी सिका की ‘द साइकिल थीफ’ (1948) देखने के बाद उन्होंने ‘दो बीघा जमीन’ बनाई थी। उन्होंने अपने फिल्मी जीवन में कई पुरस्कार जीते, जिनमें ग्यारह फिल्मफेयर पुरस्कार, दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और कान फिल्म समारोह का अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं। उनकी फिल्म ‘मधुमती’ ने 1958 में नौ फिल्मफेयर पुरस्कार जीते, जो सैंतीस सालों तक रिकॉर्ड था। उन्होंने 1935 ई. में के.एन सहगल की फ़िल्म "देवदास" में सहायक निर्देशक के रूप में काम किया।

विमल रॉय में अपनी फिल्मों में सामाजिक समस्याओं को प्रमुखता से उजागर किया और उसके समाधान का भी प्रयास किया। वे कभी एक विचारधारा में बंध कर नही रहे। कभी वे सामाजिक बुराइयों के मार्मिक सवेदना के द्वारा चित्रण करते थे तो कभी स्त्रियों की पीड़ा और सम्मान जैसी विषयो पर समाज मे फिल्मों के माध्यम से चित्रपटल पर रखते थे।

बिमल रॉय प्रतिभा के अद्भुत पारखी थे। मूल रूप से संगीतकार के रूप में ख्यातिप्राप्त सलिल चौधरी के लेखन की महत्ता को परखा और ‘दो बीघा जमीन’ में उनका उपयोग किया। ‘दो बीघा जमीन’ ने अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में अपना डंका बजा दिया। अगर प्रगतिशील साहित्य की तरह ‘प्रगतिशील सिनेमा’ की चर्चा की जाए, तो बिमल रॉय निस्संदेह इसके पुरोधा माने जाएंगे।

इनको 1953 ई. " दो बीघा जमीन" फ़िल्म के लिए फ़िल्मफ़ेअर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार से अलंकृत किया गया। 1954 – फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – बिराज बहू , 1955 – फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – परिणीता , 1959 – फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – मधुमती , 1960 – फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – सुजाता , 1961 – फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – परख , 1964 – फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – बंदिनी

इस महान व्यक्ति की निधन 8 जनवरी ,1966 को मुम्बई में बीमारी की वजह से हुई, उस वक्त वे "चैताली" फ़िल्म का निर्देशन कर रहे थे।

Monday 17 December 2018

💐 मैल्कम मार्शल :- बाउंसर के धनी गेंदबाज और मध्यक्रम बल्लेबाज


मैल्कम डेनिल मार्शल (18 अप्रैल 1958 - 4 नवंबर 1999) एक वेस्ट इंडियन क्रिकेटर थे। मुख्य रूप से एक तेज गेंदबाज थे।  मैल्कम डेनिल मार्शल का जन्म ब्रिजटाऊन,बारबाडोस में हुआ था। इनके पिता डेनज़िल डीकोस्टर एडघिल एक क्रिकेटर थे , जो एक सड़क दुर्घटना में स्वर्गवास हो गए जब वह एक साल का था। उनकी माँ एलोनोर वेल्च थी। इनकी पत्नी का नाम कोनी रोबर्टा अल हैं। 

इस दाहिने हाथ के इस तेज़ रफ़्तार के गेंदवाज़ के कई उपनाम सोबी, किलर, माचो से पुकारा जाता था। इनकी लंबाई 5'11" थी।
 इन्होंने अपनी पहली अंतरास्ट्रीय टेस्ट मैच भारत के विरुद्ध बेंगलुरु में चिन्नास्वामी स्टेडियम में सन 1978 ई. में खेला। 
80 के दशक में विश्व मे सबसे सफल गेंदबाज बने। इनकी बोलिंग में हमेशा विविधता रहती थी। ये सीमर और इन स्विंग गेंद डालते थे। ये पहला वन-डे मैच इंग्लैंड के विरुद्ध 28 मई,1980 को खेला।

◆इन्होंने 81 टेस्ट मैच के कैरियर में 20.94 की औसत से कुल 376 विकेट लिए । टेस्ट में उच्चतम बल्लेबाज़ी स्कोर 92 रन था। 
◆ इन्होंने 136 वन-डे मैच में कैरिअर में 26.96 की औसत से कुल 157 विकेट लिए। वन-डे में उच्चतम बल्लेबाज़ी स्कोर 66 रन था।
◆ इनका निधन कोलन आँत की बीमारी से सन 1999 में हुई।
मार्शल की एक टेस्ट में कॅरियर बेस्ट बॉलिंग भारत के खिलाफ अप्रैल, 1989 में पोर्ट ऑफ स्पेन में खेले गए मैच में 11 विकेट 89 रन देकर लिए।
◆22 बार पांच विकेट और चार बार एक टेस्ट मैच में 10 विकेट लिए। तीन बार एक टेस्ट इनिंग में 7-7 विकेट लिए - इंग्लैंड के खिलाफ 1988 में मैनचेस्टर में खेले गए मैच में 7 विकेट 22 रन पर, लीड्स में 1984 में इंग्लैंड के खिलाफ मैच में 7 विकेट 53 रन देकर और 1985 में ब्रिजटाउन में 7 विकेट 80 रन देकर लिए।
इस प्रकार ये विश्व के महानतम गेंदवाज़ के श्रेणी में श्रेष्ठ गेंदवाज़ थे।

Friday 14 December 2018

वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाज "कर्टले एम्ब्रोज"


कर्टले एम्ब्रोज का जन्म खूबसूरत एंटीगुआ द्वीप
के निकट एक किसान परिवार में स्वेट्सअंगुआ में 21 सितंबर,1963 में हुआ था।उसने अपने जीवन का पहला मैच पाकिस्तान के विरुद्ध जार्ज टाउन(ओवल) में 1988 ई. में खेला था। छः फुट 7 इंच लंबा एम्ब्रोज़ विश्व के बेहतरीन तेज़ गेंदबाज की सूची में आज भी महत्वपूर्ण स्थान पर है। विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने की उनकी आदत ने आलोचकों के मुँह बन्द रखने पर मजबूर किया।
ये अपने क्रिकेट के जीवनकाल में हमेशा ICC रैंकिंग में नंबर एक पर रहे हैं। इनकी गेंदों पर कभी भी छक्का नही लगा है।
टेस्ट क्रिकेट में इनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन इंग्लैंड के विरुद्ध था , जब उन्होंने 1990-91 की टेस्ट सृखंला के दौरान ब्रिजटाउन टेस्ट में मात्र 45 रन देकर 8 विकेट लिए थे।  1992-93 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पर्थ टेस्ट में एक ही पारी में 25 रन देकर 7 विकेट लिए थे। इसमे गौरतलब बात यह थी कि उसने यह सातों विकेट 32 गेंदों के अंदर मात्र 1 रन देकर हासिल किए थे। बाकी के ओवरों में 24 रन बने थे।
सर कर्टले एम्ब्रोज  
इन्होंने अपने टेस्ट क्रिकेट में 1988-2000 में 20.99 के औसत से 405 विकेट लिए थे। 

WDG4 DIESEL LOCO POWER DISTRIBUTION

 इंजन स्टार्ट होते ही मेन बैंक सापट के गियर से चाल लेकर Auxiliary जनरेटर का आमेचर घूमना शुरू कर देता है जो स्वंय के बनाये गये करन्ट से इसकी ...