Sunday 4 August 2019

प्रकृति प्रदत्त मानव चक्षु की कार्यप्रणाली


मनुष्य की आँख प्रकृति प्रदत्त अद्भुत प्रकाशीय यंत्र है। जो 
एक कैमरे से मिलती जुलती है।
आँख के गोले अथार्त नेत्र गोलक की सबसे बाहरी परत सफेद मोटे अपारदर्शी टिश्यू की होती है। जिसे श्वेत पटल या स्क्लेरोटिक (sclerotic) कहाँ जाता हैं।
कॉर्निया:- स्क्लेरोटिक का अंदर का अगला भाग कॉर्निया कहलाता है
कॉरायड ( choroid ) स्क्लेरोटिक के नीचे गहरे भूरे रङ्ग की परत होती हैं जिसे कॉरायड ( choroid ) कहते हैं। यही कॉरायड आगे के तरफ बढ़कर दो परतों में विभक्त हो जाता हैं आगे वाली अपारदर्शी परत सिकुड़ने और फैलने वाली डायफ्राम के रूप में रहती है। जिसे आईरिस ( iris ) कहाँ जाता हैं, पीछे वाली परत को सिलयरी मांशपेशी (ciliary muscles) कहते हैं।
सिलयरी मांशपेशी ही नेत्र लेंस (crystalline lens) को लटकाकर रखती है।  नेत्र लेंस एक जिलेटिन जैसे पारदर्शक तथा कोमल मुलायम पदार्थ से बने एक उत्तल लेंस है।
आईरिस ( iris ) की सहायता से आंख के नेत्र लेंस से होकर जाने वाले प्रकाश के मात्रा को घटाया औऱ बढ़ाया जा सकता हैं। अंधेरे में या रात में  आईरिस के बीच का छेद , जिसे पुतली ( pupil ) कहाँ जाता हैं, स्वतः फैल जाती हैं और तेज़ प्रकाश इस धूप में स्वतः सिकुड़ जाती है।
नेत्र गोलक के सबसे भीतरी सूक्ष्म ग्राही परत को रेटिना कहते हैं जब इन पर प्रकाश पड़ता हैं तो संवेदना ऑप्टिकल नर्व्स  ( प्रकाश स्नायु ) के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुँचती है। इसके बाद हमे देखने का अनुभव होता हैं।
कॉर्निया और नेत्र लेंस के बीच के भाग को जलीय द्रव्य यानी aqueous humour या नेत्रोंद से भरा हुआ रहता है। लेंस और रेटिना के बीच का भाग vitreous humour यानी काचाभ द्रव्य से भरी रहती हैं।
कार्यप्रणाली
आँख वास्तव में एक फोटो कैमरे की तरह काम करता है कैमरा में आगे लेंस और पीछे फ़ोटो फ़िल्म (प्लेट) होता है।इसीप्रकार आँख में आगे लेंस और पीछे की तरफ रेटिना होता हैं।
कैमरा जो कार्य डायफ्राम करता है। अथार्त प्रकाश के परिणाम या रौशनी को नियंत्रित कैमरा में डायफ्राम करता है। उसीप्रकार आँख में यह कार्य पुतली (PUPIL) करती है।
कैमरा में जो कार्य शटर या गोपक का होता है उसी प्रकार आँख में यह काम पलक करते है।
जब प्रकाश की किरणें किसी ऑब्जेक्ट यानी वस्तु से टकरा कर आँख पर पड़ती है तो वे कॉर्निया या स्फटिक लेंस से अपवर्तन के बाद रेटिना पर पड़ती हैं। और  रेेटिना पर ही    वस्तु का प्रतिबिंब बनता है। यह प्रतिबिम्ब वस्तु के उल्टा बनता है। लेकिन मस्तिष्क में वस्तुओं को सीधा देखने की सवेंदना होती है।
वस्तु दूर रहे या पास , मनुष्य उसे साफ साफ देखता है। आंख ऐसा अपने फोकल लेंस की फोकस दूरी को बदल कर करता है। यह कार्य सिलयरी मांसपेशियों के तनाव या टेंशन के घटने बढ़ने से होता हैं। आँख की इस क्षमता को स्वतः समायोजन (accommodation) कहते है।
सामान्य आँख 25 सेंटीमीटर (निकट बिंदु) से अनंत दूरी (दूर बिंदु) तक कि वस्तुओं को स्पष्ट देख सकते हैं।

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