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Saturday, 13 January 2024

सल्तनत कालीन सैन्य संगठन

 सैन्य संगठन

सैनिकों के प्रायः चार वर्ग होते थे ।

• प्रथम वर्ग में वे सैनिक आते थे जिनकी भर्ती नियमानुसार सुल्तान की सेना के लिए की जाती थी।

• इसी वर्ग के अन्तर्गत शाही गुलाम, शाही अंगरक्षक इत्यादि आते थे।

• द्वितीय वर्ग में वे सैनिक आते थे, जिनकी भर्ती दरबार के सूबेदारों और प्रान्तीय इक्तादारों द्वारा की जाती थी।

• इनका वेतन इक्तादार ही देते थे ।

• तृतीय वर्ग में वे सैनिक आते थे, जिनकी भर्ती युद्ध के समय अस्थायी रूप से की जाती थी ।

• चतुर्थ वर्ग में वे सैनिक आते थे जो स्वेच्छा से युद्ध करने के उद्देश्य से सेना में भर्ती होते थे ।

• इन्हें युद्ध में लूटी हुई सम्पति में से हिस्सा दिया जाता था ।

• दीवान-ए-आरिज 'आरिज-ए- मुमालिक' सेना का प्रधान होता था ।

• इसका मुख्य कार्य सेना का संचालन, अनुशासन तथा उसपर नियंत्रण रखना था ।

सैनिक अधिकारियों को वेतन के रूप में जागीर तथा सैनिकों को नगद वेतन दिया जाता था ।

• सेना के तीन विभाग थे- (1) घुड़सवार सेना (2) हस्ति सेना (3) पैदल सेना

• घुड़सवार सेना, सेना का मुख्य आधार थी • घुड़सवार दो प्रकार के होते थे- एक अस्पा, यानी जिनके पास एक घोड़ा होता था। तथा दो अस्पा-जिनके पास दो घोड़ा होता था।

• हस्तिसेना का प्रचलन भी था ।

• पैदल सेना को 'पायक' कहा जाता था ।

• युद्ध के समय सेना को चार भागों में विभाजित किया जाता था ।

• ये भाग थे-केन्द्रीय, बाम पक्ष, दक्षिण पक्ष और सुरक्षित दल।

सल्तनत कालीन प्रशासन

  सल्तनतकालीन प्रशासन

• सल्तनतकालीन प्रशासन केन्द्रीकृत था।

• कई सुल्तानों ने खलीफा के नाम से खुतवा पढ़वाया, लेकिन सत्ता में खलीफा का कोई हस्तक्षेप नहीं था।

• खुतवा सिर्फ दिखावा मात्र था, जो सुल्तानों को इस्लामिक विश्व के साथ जोड़ता था।

• सुल्तान का पद केन्द्रीय प्रशासन का सबसे महत्त्वपूर्ण पद था । • सारी राजनीतिक, सैनिक व कानूनी सत्ता उसी के हाथ में थी। वह राज्य का सर्वोच्च प्रशासक, सेनापति और न्यायाधीश था।

• सुल्तान की नियुक्ति और उत्तराधिकार का कोई सुनिश्चित नियम सल्तनत काल में प्रचलित नहीं था।

• व्यक्तिगत क्षमता सबसे महत्वपूर्ण थी जिसके आधार पर कोई भी सुल्तान बन सकता था ।

• सल्तनतकालीन प्रशासन दो भागों में विभक्त था-(1) केन्द्रीय शासन (2) प्रान्तीय शासन

• सल्तनत काल में प्रशासनिक व्यवस्था पूर्ण रूप से इस्लामिक रीतियों पर आधारित थी ।

उलेमाओं की प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती थी ।

• मुबारक खिलजी पहला ऐसा सुल्तान था जिसने खिलाफत के मिथक को तोड़कर स्वयं को खलीफा घोषित किया।

• सुल्तान 'शरीयत' के अधीन कार्य करता था ।

• मंत्रिपरिषद को सल्तनतकाल 'मजलिस-ए-खलबत' कहा जाता था।

■ सल्तनतकालीन मंत्रिपरिषद् में 4 मंत्री महत्त्वपूर्ण थे-

(1) वजीर (प्रधानमंत्री)

(2) आरिज-ए-मुमालिक

(3) दीवान-ए-इंशा

(4) दीवान-ए-रसातल

◆केन्द्रीय प्रशासन◆

• केन्द्रीय प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए अनेक मंत्री होते थे ।

• मंत्रियों की नियुक्ति सुल्तान अपनी इच्छानुसार करता था ।

• ये मंत्री सुल्तान को शासन में अपना सहयोग प्रदान करते थे। • इनकी संख्या निश्चित नहीं थी ।

• साधारणतया मंत्रियों की संख्या 6 होती थी- (1) वजीर (2) आरिज-ए-मुमालिक (3) दीवान-ए-रसालत (4) दीवान-ए-ईशा (5) सद्र-उस-सुदूर (6) दीवान-ए-कजा

• बहरामशाह ने नाइब का पद भी सृजित किया था जो सुल्तान के बाद का सबसे बड़ा अधिकारी होता था ।

• वजीर का पद आधुनिक प्रधानमंत्री जैसा था, वह सारे विभागों की देख-रेख करता था।

● वजीर के विभाग को दीवान-ए-वजारत कहते थे।

● वजीर की सहायता के लिए नायब वजीर होता था।

•सुल्तान की अनुपस्थिति में वजीर ही शासन प्रबंध करता था।

आरिज-ए-मुमालिक के दो प्रमुख अंग थे - मुशरिफ-ए-मुमालिक (महालेखाकार) तथा मुस्तौफी-ए-मुमालिक (महालेखा परीक्षक)।


मुशरिफ-ए-मुमालिक प्रान्तों तथा अन्य विभागों से प्राप्त आय-व्यय का लेखा-जोखा रखता था। फिरोजशाह तुलगक के जमाने में यह केवल आय का हिसाब रखता था । इसकी सहायता के लिए एक नाजिर होता था ।


मुस्तौफी-ए-मुमालिक, मुशरिफ द्वारा रखे गये लेखों-जोखों की जाँच करता था। इसकी सहायता के लिए लिपिकों की व्यवस्था थी । इसके लिए एक विशालकाय कार्यालय बना हुआ था ।

• दीवाने-रसालत विदेश विभाग था ।

• विदेशों से पत्र व्यवहार तथा विदेशी राजदूतों की व्यवस्था करने का उत्तरदायित्व इसी विभाग का था। विदेशों में राजदूत नियुक्त करने में इस विभाग की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी । दीवाने-इंशा पत्र व्यवहार करने वाला विभाग था।

• इसके प्रधान को 'दीवान-ए-खास' कहते थे ।

• इसका मुख्य कार्य शाही घोषणाओं तथा पत्रों के मसविदे तैयार करना था ।

• इस विभाग के लेखकों को दबीर के नाम से जाना जाता था।

• सुल्तान के सभी फरमान इसी विभाग के द्वारा जारी किए जाते थे ।

सद्र-उस-सुदूर, धर्म विभाग तथा राजकीय दान विभाग का सर्वोच्च अधिकारी था ।

 • इसका मुख्य कार्य इस्लामी नियमों को लागू करवाना था ।

• यह मस्जिदों, मदरसों, मकतबों आदि के निर्माण के लिए धन की व्यवस्था भी करता था।

• दीवान-ए-कजा का प्रमुख काजी-उल-कजात होता था।

• यह न्याय विभाग का सर्वोच्च अधिकारी होता था।

• यह पद प्रायः सद्र-उस-सुदूर को ही सौंपा जाता था। इनके निर्णय पर पुर्नविचार सिर्फ सुल्तान के न्यायालय मे ही हो सकता था।

■■ अन्य विभाग ■■

दीवाने-वक्फ की स्थापना जलालुद्दीन खिलजी द्वारा की गयी थी। • यह विभाग व्यय के कागजातों की देख-रेख किया करता था।

दीवाने-मुस्तखराज की स्थापना अलाउद्दीन खिलजी द्वारा की गयी। • यह वित्त विभाग के अधीन कार्य करता था ।

• यह विभाग आयकरों का लेखा-जोखा रखता था ।

●'दीवाने-कोही' की स्थापना मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा की गयी ।

• यह कृषि विभाग था, जो कृषि के विकास के लिए कार्य करता था ।

आरिजे-मुमालिक सैन्य विभाग की स्थापना बलबन द्वारा की गयी ।

दीवान-ए-आरिज इस विभाग का प्रमुख था ।

• यह विभाग सैनिकों की भर्ती करता था तथा फौजों का निरीक्षण करता था ।

बरीद-ए-मुमालिक सूचना एवं गुप्तचर विभाग का प्रमुख होता था

• यह डाक चौकी का भी प्रमुख होता था ।

• विभिन्न गुप्तचर और संदेशवाहक इसके अधीन कार्य करते थे ।

• दरबार में भी अनेक कर्मचारी होते थे, जैसे- (1) वकील-ए-दरमहल (2) बारबक (3) अमीर-ए-हाजिब (4) अमीर-ए-शिकार (5) अमीर-ए-मजलिस (6) सर-ए-जहाँदार ।

• वकील-ए-दरमहल राजमहल व सुल्तानों की व्यक्तिगत सेवाओं का प्रबंध करता था। • राजकीय आदेशों का प्रचार, प्रसार एवं क्रियान्वयन इसी के माध्यम से होता था।

• बारबक शाही दरबार की शान-शौकत व मर्यादाओं की रक्षा करता था ।

●अमीर-ए-हाजिब शाही दरबार में पेश होने के तौर-तरीकों को देखता था ।

• अमीर-ए-शिकार शाही शिकार का प्रबंध करने वाला अधिकारी था ।

• अमीर-ए-मजलिस राज दरबार में हाने वाले उत्सवों तथा दावतों का प्रबंध करता था ।

• सर-ए-जहाँदार सुल्तान के व्यक्तिगत अंगरक्षकों का प्रमुख होता था ।

अमीर-ए-आखूर अश्वशाला का प्रमुख था ।

शाहन-ए-पील हस्तिशाला का प्रमुख होता था ।

दीवान-ए-वंदगान गुलामों की देखरेख करता था। इसकी स्थापना फिरोज तुलगक द्वारा की गयी थी।




Friday, 5 February 2021

पृथ्वी की भूवैज्ञानिक समय सारणी

पृथ्वी के भूवैज्ञानिक समय सारणी को महकल्पों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक महकल्प को अनेक कल्पों में , व प्रत्येक कल्प को अनेक युगों में बाँटा गया है। 

भूवैज्ञानिक इतिहास में पृथ्वी के अंतिम महाकल्प को नूतनजीव महाकल्प कहा जाता है। 




पृथ्वी के भूगर्भीय इतिहास का अध्ययन करने से पूर्व कुछ विशिष्ट शब्दावली के बारे जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है।

1. EON (आयु) - इनमें प्री- कैम्ब्रियन के अंतर्गत आने वाले तीन EON है।  1. हेडियन(Eozoic), 2.आर्कियन (Archaeozoic), 3.प्रोटोरोज़ोइक (Proterozoic) है। 

और कैम्ब्रियन काल के अंतर्गत आने वाले एक EON              फेनेरोज़ोइक (Phenerozoic) है।

 ◆ रेडियोधर्मी तथ्यों के आधार पर पृथ्वी के निर्माण से वर्तमान तक के समय को चार EON (आयु) में बाँटा गया हैं।

प्री-कैम्ब्रियन(4.6अरब वर्ष पूर्व से 57करोड़ वर्ष पूर्व तक)|

1.हेडियन(HADEAN):-(4.6 अरब वर्ष पूर्व से       3.8अरब वर्ष पूर्व)

2.आर्कियन्(ARCHEAN):-(3.8 अरब वर्ष पूर्व से 2.5 अरब वर्ष पूर्व)

3. प्रोटोरोज़ोइक:-(2.5 अरब वर्ष पूर्व से 57 करोड़ वर्ष पूर्व)

◆ कैम्ब्रियन काल 

4.फेनेरोज़ोइक (57 करोड़ वर्ष पूर्व से वर्तमान तक का समय)

पूर्व कैम्ब्रियन या आध्य अवधि

पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद एक शांत समय की उपस्थिति स्वीकार की जाती है। जिसके बारे में अभी तक कोई विशिष्ट जानकारी का अभाव है। इस अवधि के तीन उपविभाग है।

1. हेडियन या Eozoic EON (इयोजोइक-आयु)

2.आर्कियोजोइक आयु (Archaeozoic-EON)

3.प्रोटोरोज़ोइक आयु (Proterozoic-EON)










Aristotle's view of matter

 

Aristotle's view of matter:
Greek philosopher Aristotle (384-322 B.C.)
believed that all material things are made up of four Primary or elementary substances : fire, air, water, and earth. He also believed that these substances differed in two properties; hot versus cold and dry versus wet. The
primary substances can be represented as the edges of a square, and each one is flanked by their associated properties on the corners of the square. For example, cold and dry are the properties associated with the substance
earth. In Aristotle's philosophy of matter, a piece of wood must contain a lot of earth because he thought that the wood felt cold and dry.






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 इंजन स्टार्ट होते ही मेन बैंक सापट के गियर से चाल लेकर Auxiliary जनरेटर का आमेचर घूमना शुरू कर देता है जो स्वंय के बनाये गये करन्ट से इसकी ...