Monday 8 January 2018

RECYCLE BIN

The Recycle Bin,represented on the Desktop by a wastebasket icon,is a folder that temporarily stores deleted files. When it is emptied, the files are purged from the computer all at once. THIS IS VERY IMPORTANT.

Sunday 7 January 2018

TENSE :- PART-1

Tense:- [1] PRESENT TENSE [2] PAST TENSE [3] FUTURE TENSE                                              1.] SIMPLE PRESENT              1.] SIMPLE PAST             1.] SIMPLE FUTURE                           2.] PRESENT CONTINUOUS   2.] PAST CONTINUOUS   2.] FUTURE CONTINUOUS              3.] PRESENT PERFECT            3.] PAST PERFECT             3.] FUTURE PERFECT                   4.] PRESENT PERFECT CONTINUOUS 4.] PAST PERFECT CONTINUOUS 4.] FUTURE CONTINUOUS

1.SIMPLE PRESENT:-मै किकेट खेलता हूँ।  I play cricket . पृथ्वी गोल घूमती है। The earth moves round. इसमें कोइ specific time का जिक्र नही होता होता है। लेकिन इसमें एक ऐसी चीज बतायी है जो आज़ भी होती है! मतलब इस घंटे ,महिने ,इस दिन होत है ! ज्यादातर FACTS,HABIT, and ROUTINE बताने वाले शब्द SIMPLE PRESENT TENSE होते है !

EX.‌‌- तुम पिज्जा खाते हो !   - HABIT - YOU EAT PIZZA. } ता हुँ ,ता है,ते है ,ती है SIMPLE PRESENT है !   पृथ्वी गोल घूमती हैं !   - FACTS - THE EARTH MOVES ROUND.
      बच्चें क्रिकेट खेळतें है ! -ROUTINE-CHILDREN PLAY CRICKET .
       S(subject )  +V1(first form of verb ) +O(object) 
        
             मैं(subject)            वीडियो (object)       देखता हूँ (verb )  
NOTE :- यदि SUBJECT THIRD PERSON ओर SINGULAR है तो VERB में S/ES लगाया जाता हैं !  EX :-रोहन जल्दी सोता है ! - ROHAN SLEEPS EARLY .


2. SIMPLE PAST :-मैंने वीडियो देखी ! ऊनहोने क्रिकेट खेला! इन वाकयों मैं अतार्थ SIMPLE PAST TENSE में हम यह mention नहीं करते है काम किस समय हूआ , यह काम PAST में कभी भी हो सकता है ! ONE HOUR AGO , IN THE MORNING,TWO DAYS AGO,IN THE PAST LIFE. EX.- I WATCHED VIDEO. मैंने वीडियो देखी. MOHAN LOST WEIGHT .मोहन ने वज़न घटाया. 

S (Subject )     +V2(verb का दूसरा रूप )               + O (Object) 


3. SIMPLE  FUTURE  TENSE :- ये TENSE का  USE  सबसे ज्यादा तब होता है ! जब हमारे घऱ वाले हमें कोई काम बताते है ! जैसे बेटा मार्केट सें चीनी ला  दो ! मम्मी ला दुगा !कोई भी काम हम FUTURE में करने वालें है या कोई भी चीज़ भविष्य में होने वाली है वह है SIMPLE FUTURE  हमे FUTURE में होने वाली कोई चीज़ predict करनी हो जैसे:- " मै कल मार्किट जाऊंगा ! कल का मैच इंडिया जीतेगा!  कल बारिश होगी ! 

Subject  +  will/shall  +   V1   +    Object
                                       (Helping verb)                    (Main verb)    
NOTE:- Traditional English (British grammer) Grammer के अनुसार I/WE के साथ shall used होता है ! & 11nd  और   111rd person के साथ  WILL का use कर लेते है और उसे सही माना जाता है !  


 

Thursday 4 January 2018

Infertility

 बन्ध्यत्व या गर्भ का ना ठहरना:-विवाह के बाद यदि पति-पत्नी नवयुवा आयु के हो,तो एक से ड़ेढ वर्ष तक संतान न भी हो,तो भी कोई हर्ज या चिंता की बात नही होती,लेकिन जिनकी आयु 30-35 वर्ष के बीच हो,उन्हें संतान प्राप्ति में देर नही करनी चाहिए।ऐसी सूरत में यदि पति-पत्नी निरंतर साथ रहते है,किसी प्रकार का गर्भ-निरोधक उपाय नही करते,फिर भी गर्भ की स्थापना ना होती हो,तो फिर इस बात की जांच करना आवश्यक हो जायेगा कि पति-पत्नी में से किसमें कमी है या  विकार है,क्योंकी इस स्थिति को 'बंध्यत्व स्थिति' यानी स्टलिटी या इनफर्टिलिटी कहते है।कुछ हालात ऐसे होते है,जिनमे दोनो में ही कुछ कमियां होती है या दोनों में से किसी एक मे कमी हो सकती है।पति के मामले में शुक्राणुओं का न होना या पर्याप्त मात्रा में न होना टेस्टीज यानी अण्डकोषों की एट्रोफी यानी अण्डकोष अपूर्ण या विकृत स्थिति के हो,अनडिसेन्डेड टेस्टीज यानी जन्मजात स्थिति ऐसी होनी की अण्डकोष नीचे न उतरा हो या फिर ऑपरेशन से अण्डकोष निकाल दिया गया हो।पत्नी के मामले में ऐसा हो कि उसके डिम्बाशय, गर्भाशय, फेलोपियन ट्युब आदि प्रजनन अंग जन्मजात रूप से अनुपस्थित हो या डिम्ब न बनता हो,फेलोपियन ट्यूब अवरूद्घ हो या ऑपरेशन द्वारा गर्भाशय निकाल दिया गया हो।ये सभी सथितिया 'पूर्ण बंध्यत्व' की होती है।पूर्ण बन्ध्यत्व वाली स्थिति का इलाज लगभग असंभव होता है।कुछ सिथतियाँ ऐसी भी होती है,जिनमे पति-पत्नी दोनों में ही कुछ-न-कुछ खराबियां या कमिया होती है और जिनका ईलाज करना सम्भव भी होता है।इन स्थितियों को 'रिलेटिवस्टलिटी' कहते है।गर्भ न ठहरने के कारणो की जांचो में पति की जांच का बहुत महत्व होता है।पति के शुक्र की जांच करके यह देखा जाता है कि उसमें पर्याप्त मात्रा में शुक्राणु है या नही। यदि अस्थायी रूप से या स्थायी रूप से वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नही हो,तो इसे 'ओलिगोंस्पमिया' यानी शुक्राणु -अल्पता की स्थिति कहते हैं।इस स्थिति में गर्भाधान होने की संभावना बहुत क्षीण हो जाती है।ऐसा भी होता है कि शुक्र में शुक्राणु बिलकुल ही न पाए जाय तो इसे 'अजोस्पमिया' यानी शुक्राणु हीनता की स्थिति कहते है।इस स्थिति में गर्भाधान होने की कतई कोई संभावना नही रहती है। एकक स्थिति पस सेल्स पाए जाने की होती है, जो गर्भाधान में बाधक होती है। शुक्राणुओं की कमी का कारण डायबिटीज़(मधुमेह), गुप्त रोग, मम्स, विषाणुजनित संक्रमण, अण्डकोषों की थैली पर चोट (स्क्रोटल इंजरी), ऑपरेशन होना, तपेदिक होना, रेडिएशन का असर होना, कोई भावनात्मक मानसिक आघात लगना आदि कोई कारण हो सकता है।यदि शुक्राणु पर्याप्त मात्रा में हो, किन्तु स्खलन के फौरन बाद ही गतिहीन हो जाये,तो भी गर्भधान नही हो पाता।यदि अजोस्पमिया की स्थिति हो और इसका कारण किसी प्रकार का अवरोध हो,तो इसका ऑपरेशन करके अथवा होमियोपैथिक चिकित्सा द्वारा अवरोध हटाया जा सकता है। अगर जन्मजात कारणों से शुक्राणुओं का निर्माण न होता हो, तो इसकी चिकित्सा कठिन है।अन्य कारणों से चिकित्सा करके शुक्राणु - अल्पता को ठीक किया जा सकता है। पति यदि अजोस्पमिया से ग्रस्त है, तो पहले पति की चिकित्सा की जानी चाहिये , अन्यथा पत्नी की जांच करना बेकार होगा, क्योंकि पत्नी गर्भधारण करने में सक्षम हो या न हो, पर अजोस्पमिया से ग्रस्त पति तो गर्भाधान करने के योग्य होता ही नही।पत्नी की जांच उस स्थिति में करना जरूरी होता है,जब उसका पति पूर्ण स्वस्थ और गर्भाधान करने में पूर्ण सक्षम हो, फिर भी गर्भास्थापना न हो रही हो। ऐसी स्थिति में पत्नी की जाँचो के प्रमुख वर्ग तीन है।पहला सर्वाइकल फैक्टर यानी गर्भाश्य ग्रीवा से संबंधित मामला, दूसरा ओव्युलेशन और तीसरा ट्यूबल फेक्टर ।----सर्वाईकल फैक्टर:- योनि और गर्भाशय ग्रीवा में इंफेक्शन होना या इस जगह एसीडिटी बढ़ी हुई होना। इन दोनो कारणों से शुक्राणु बच्चेदानी के मुंह तक आते-आते खत्म हो जाते है, जिस कारण गर्भ स्थापित नही हो पाता।                           -ऑव्युलेशन:- यदि महिला का मासिक धर्म प्रति माह नियमित रूप से 28 दिन में हो रहा हो, तो ऑव्युलेशन का समय महिला के ऋतुकाल के 14वे दिन यानी अगला मासिक धर्म शुरू होंने के दिन से 14 दिन पहले होता हैं। ऑव्युलेशन का मतलब होता है डिम्ब का गर्भशय में उपस्थित होना, जो गर्भ की स्थापना के लिए उतना ही  जरूरी होता है, जितना पुरुष के वीर्य में पर्याप्त मात्रा में शुक्राणुओ का होना जरूरी होता है।।              
  • -ट्यूबल फैक्टर:- गर्भशय की दोनों तरफ स्थित ओवरीज यानी डिम्बाशय से निकल कर एक-एक नली गर्भशय से जुड़ी होती है। इन्हे फेलोपियन ट्यूब कहते है।डिम्बाशय से निकलने वाला डिम्ब इन्ही नलियों से होता हुआ गर्भाशय में पहुँचता है, जहाँ शुक्राणुओं से उसका संपर्क होता है और  गर्भ की स्थापना हो जाती है।इनका संपर्क न हो, तो गर्भ स्थित नही हो पाता। इन तीनो वर्गो की जांच करके यह देखा जाता है कि कहां खराबी है।यदि मासिक धर्म आगे-पीछे होता हो ,तो ऑव्युलेशन पीरियड भी आगे-पीछे होता है।ऑव्युलेशन हो रहा है या नही, यह जानने के लिए मासिक धर्म के एक सप्ताह पहले डी .एंड.सी.करके , बच्चे दानी के अंदर से थोड़ा प्रदार्थ निकालकर जांच के लिए भेज देते है।2-3 दिन में रिपोर्ट मिल जाती है, जिससे पता चल जाता है कि ऑव्युलेशन हो रहा है या नहीं। यदि हारमोन्स की कमी हो , तो इसका भी पता चल जाता है। कोशिश यही की जाती है कि बन्ध्यत्व का जो भी कारण हो , उसकी जानकारी प्राप्त की जाए और उस कारण को दूर किया जाए।अब तो दिन-ब-दिन विज्ञान नए-नए उपाय खोजता जा रहा है और नई-नई सफलताएं मिलती जा रही है।अतः निराश होने का कोई कारण नहीं।                                                                                                 -उपचार:- सिमिलिमम के आधार पर निम्नलिखित होमियोपैथीक औषधीया प्रयुक्त की जानी चाहिए- 'कालीब्रोम' , 'हयोसाइमस' , 'ओरम' , 'अमोनकाब्रा' , 'फेरमफाँस' , 'साईलेशिया' , 'काँफिया' , 'लेकेसिस' , 'नैट्रम्यूर' , 'एग्नस कैक्टस' ,     -बन्ध्यत्व जैसी स्थितियमेव दवा का चुनाव करते समय प्रायः रोगी की मानसिक अवस्था, प्रकृति, प्रव्रिटी ,अचार - विचार , भूख - प्यास, खान - पान , समान्य शारिरिक क्रियाये , नींद , गुस्सा आदि उचित दवा के  चुनाव में मददगार साबित होता है!
  1. knowlege for you


Wednesday 3 January 2018

Eye Dieses

Eye Dieses(आँख के रोग):-

 आँखे आना:-आँख का दुखना या आँखे आना,आँखों का एक छूत का रोग है।यह एक प्रकार के बैक्टरिया, फफूंद या वायरस (विषाणु) के कारण होता है।इससे आंख का सफेद भाग (दृष्टिपटल) और पलको की भीतरी सतह को ढकने वाली पतली पारदर्शी झिल्ली लाल हो जाती है । यह रोग प्रायः खतरनाक नही होता,किन्तु ठीक प्रकार से इलाज करवाने में देरी करने से नेत्र ज्योति पर असर पड़ सकता है। लक्षण: यह रोग एक आंख या दोनों आँखों मे खुजलाहट के साथ शुरू होता है।आंखे लाल हो जाती है और पलके सूज जाती है,शुरू में आंखों से पानी या पतली कीच-सी निकलती है।इसके बाद आंखों की कोरो में गाढ़ी-सी सफ़ेद या पीलापन लिए सफेद कीच-सी इकट्ठी हो जाती है,आंख खोलना मुश्किल हो जाता है और रोगी प्रकाश सहन नही कर सकता।यदि इलाज नही कराया जाय तो आंखों की पुतली में फोड़ा हो जाता है और आंख की पुतली पर सफेदा, माड़ा या फुला बन जाता है।इससे सदा के लिए नेत्रज्योति नष्ट भी हो सकती है। रोग कैसे फैलता है:- यह रोग दूषित हाथ या उंगलियां आंखों पर लगाने से,दूषित तौलिया,रुमाल आदि से आंखे पोछने से और रोगी की अन्य दुषित चीजो के प्रयोग से भी फैलता है।मक्खियां भी इस रोग को एक रोगी से दूसरे रोगी तक पहुँचाता है।यह रोग धूल ,धुँआ, गंदे पानी मे नहाने या रोगी की सुरमा डालने की सलाई का इस्तेमाल करने से या एक ही उंगली द्वारा एक से अधिक बच्चों को काजल लगाने से भी हो जाता है। रोकथाम:- इस रोग की रोकथाम के सबसे उत्तम उपाय साफ रहना,सफाई के प्रति सावधानी बरतना और पास-पड़ोस को साफ -सुथरा रखना है । रोगी के प्रतिदिन काम आने वाले के लिए रुमाल और वस्त्रों को जब तक अच्छी तरह साफ न कर ले,दूसरे के कपड़ों के साथ न मिलाये, भीड़-भाड़ से बचकर रहे।घर मे सभी के लिए एक सुरमा सलाई का उपयोग न करे।आंखों में काजल न डाले , आंखे नित्य साफ और ठण्डे पानी से धोए। knowledge for you

Monday 1 January 2018

Fire Burn safety

Fire Burn safety (   आग से जलना  ) * किसी भी आकस्मिक कारणों से व्यक्ति आग की चपेट में आ जाता हैं।यह एक संकट कि अवस्था है।इसके लिए हमें प्राथमिक उपचार क्याकरना चाहिए और इसकी जानकारी भी अच्छी तरह से होनी चाहिए:
(१). आग की लपेटमे आने पर दौड़ना-भागना नहीं चाहिए। आग से सुरक्षित स्थानपर लेटकर इधर-उधर लुढ़कना चाहिये।इससे आग जल्दी बुझ जाती है।जलते हुए कपड़ो को बड़ी सावधानी से ब्लेड या चाकू से काटकर अलग कर देना चाहिए।             (२). जलते हुए वयक्ति पर मिट्टीकम्बल आदि डालकर आग बुझाने का प्रयास करना चाहिये। कम्बल से इस प्रकार ढक दे कि हवा बंद हो जाय।इससे आग तुरंत बुझ जाएगी। कम्बल आदि डालकर आग बुझाने से घाव की गहराई बढ़ जाती है और त्वचा काफी अंदर तक झुलस जाती है। पानी डालकर बुझाने से फफोले पड़ जाते हैं, पर घाव गहरे नही होते।यथाशीघ्र जो भी साधन उपलब्ध हो,उससे आग बुझाना चाहिए।
(३). जले हुए स्थान पर नारियल का तेल लगाना चाहिये।यदि गरम घी- तेल आदि गिरने से फोले पर जाये तो यह उपचार प्रयाप्त हैं।
(४). यदि शरीर का अधिक भाग झुलस गया हो तो चिकित्सालय में रोगी को ले जाना चाहिए शरीर का अधिक भाग  जल गया हो तो व्यक्ति के बचने की संभावना कम होती है। (५).जले हुए स्थान को हलके-हलके रुई से साफ करके नारियल या जैतून का तेल आदि लगाना चाहिए। संक्रमण आदि से बचने के लिए जीवाणुनाशक घोल- जैसे सोडाबाईकार्ब के  घोल से धोना उचित है मलहम लगाने  से घाव देरी से भरते हैं।
(६).खुले घाव में रुई चिपक जाती है।चिपकने पर उसे छुड़ाने की चेष्टा न करे, क्योंकि ऐसा करने से घाव बढ़  जाएगा। (७). घाव को सदैव ढक कर रखे जिससे मच्छर-मक्खी आदि के बैठने से संक्रमण न हो।
 (८). फफोलो को फोड़े नही इस परतीसी या नारियल का तेल अथवा मक्खन लगाए।भूल कर भी मिट्टीका तेल,पेट्रोल या स्प्रिट न लगायें। (९). यदि छोटा बच्चा गलती से आग से झुलस जाए तो जले हुए हिस्से को तबतक पानी मे डुबाये रखे जबतक जलन समाप्त न हो जाये।असली शहद का लेप करने से भी जलन शांत हो जाती है।
(१०). रोगी को मुलायम आरामदायक बिस्तर पर लिटाये तथा प्रयाप्त जल पिलाते रहे।पौष्टिक आहार दे तथा मानसिक रूप से सांत्वना देते रहे कि वह जल्दी ठीक हो जायेगा।शरीर मे जल का संतुलन बना रहे ,इसके लिए ग्लूकोज चढ़ाने की आवश्यकता पर सकती है।चिकित्सक का परामर्श लेना भी आवश्यक है। knowledge for you

WDG4 DIESEL LOCO POWER DISTRIBUTION

 इंजन स्टार्ट होते ही मेन बैंक सापट के गियर से चाल लेकर Auxiliary जनरेटर का आमेचर घूमना शुरू कर देता है जो स्वंय के बनाये गये करन्ट से इसकी ...