सल्तनतकालीन प्रशासन
• सल्तनतकालीन प्रशासन केन्द्रीकृत था।
• कई सुल्तानों ने खलीफा के नाम से खुतवा पढ़वाया, लेकिन सत्ता में खलीफा का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
• खुतवा सिर्फ दिखावा मात्र था, जो सुल्तानों को इस्लामिक विश्व के साथ जोड़ता था।
• सुल्तान का पद केन्द्रीय प्रशासन का सबसे महत्त्वपूर्ण पद था । • सारी राजनीतिक, सैनिक व कानूनी सत्ता उसी के हाथ में थी। वह राज्य का सर्वोच्च प्रशासक, सेनापति और न्यायाधीश था।
• सुल्तान की नियुक्ति और उत्तराधिकार का कोई सुनिश्चित नियम सल्तनत काल में प्रचलित नहीं था।
• व्यक्तिगत क्षमता सबसे महत्वपूर्ण थी जिसके आधार पर कोई भी सुल्तान बन सकता था ।
• सल्तनतकालीन प्रशासन दो भागों में विभक्त था-(1) केन्द्रीय शासन (2) प्रान्तीय शासन
• सल्तनत काल में प्रशासनिक व्यवस्था पूर्ण रूप से इस्लामिक रीतियों पर आधारित थी ।
उलेमाओं की प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती थी ।
• मुबारक खिलजी पहला ऐसा सुल्तान था जिसने खिलाफत के मिथक को तोड़कर स्वयं को खलीफा घोषित किया।
• सुल्तान 'शरीयत' के अधीन कार्य करता था ।
• मंत्रिपरिषद को सल्तनतकाल 'मजलिस-ए-खलबत' कहा जाता था।
■ सल्तनतकालीन मंत्रिपरिषद् में 4 मंत्री महत्त्वपूर्ण थे-
(1) वजीर (प्रधानमंत्री)
(2) आरिज-ए-मुमालिक
(3) दीवान-ए-इंशा
(4) दीवान-ए-रसातल
◆केन्द्रीय प्रशासन◆
• केन्द्रीय प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए अनेक मंत्री होते थे ।
• मंत्रियों की नियुक्ति सुल्तान अपनी इच्छानुसार करता था ।
• ये मंत्री सुल्तान को शासन में अपना सहयोग प्रदान करते थे। • इनकी संख्या निश्चित नहीं थी ।
• साधारणतया मंत्रियों की संख्या 6 होती थी- (1) वजीर (2) आरिज-ए-मुमालिक (3) दीवान-ए-रसालत (4) दीवान-ए-ईशा (5) सद्र-उस-सुदूर (6) दीवान-ए-कजा
• बहरामशाह ने नाइब का पद भी सृजित किया था जो सुल्तान के बाद का सबसे बड़ा अधिकारी होता था ।
• वजीर का पद आधुनिक प्रधानमंत्री जैसा था, वह सारे विभागों की देख-रेख करता था।
● वजीर के विभाग को दीवान-ए-वजारत कहते थे।
● वजीर की सहायता के लिए नायब वजीर होता था।
•सुल्तान की अनुपस्थिति में वजीर ही शासन प्रबंध करता था।
आरिज-ए-मुमालिक के दो प्रमुख अंग थे - मुशरिफ-ए-मुमालिक (महालेखाकार) तथा मुस्तौफी-ए-मुमालिक (महालेखा परीक्षक)।
• मुशरिफ-ए-मुमालिक प्रान्तों तथा अन्य विभागों से प्राप्त आय-व्यय का लेखा-जोखा रखता था। फिरोजशाह तुलगक के जमाने में यह केवल आय का हिसाब रखता था । इसकी सहायता के लिए एक नाजिर होता था ।
• मुस्तौफी-ए-मुमालिक, मुशरिफ द्वारा रखे गये लेखों-जोखों की जाँच करता था। इसकी सहायता के लिए लिपिकों की व्यवस्था थी । इसके लिए एक विशालकाय कार्यालय बना हुआ था ।
• दीवाने-रसालत विदेश विभाग था ।
• विदेशों से पत्र व्यवहार तथा विदेशी राजदूतों की व्यवस्था करने का उत्तरदायित्व इसी विभाग का था। विदेशों में राजदूत नियुक्त करने में इस विभाग की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी । दीवाने-इंशा पत्र व्यवहार करने वाला विभाग था।
• इसके प्रधान को 'दीवान-ए-खास' कहते थे ।
• इसका मुख्य कार्य शाही घोषणाओं तथा पत्रों के मसविदे तैयार करना था ।
• इस विभाग के लेखकों को दबीर के नाम से जाना जाता था।
• सुल्तान के सभी फरमान इसी विभाग के द्वारा जारी किए जाते थे ।
• सद्र-उस-सुदूर, धर्म विभाग तथा राजकीय दान विभाग का सर्वोच्च अधिकारी था ।
• इसका मुख्य कार्य इस्लामी नियमों को लागू करवाना था ।
• यह मस्जिदों, मदरसों, मकतबों आदि के निर्माण के लिए धन की व्यवस्था भी करता था।
• दीवान-ए-कजा का प्रमुख काजी-उल-कजात होता था।
• यह न्याय विभाग का सर्वोच्च अधिकारी होता था।
• यह पद प्रायः सद्र-उस-सुदूर को ही सौंपा जाता था। इनके निर्णय पर पुर्नविचार सिर्फ सुल्तान के न्यायालय मे ही हो सकता था।
■■ अन्य विभाग ■■
• दीवाने-वक्फ की स्थापना जलालुद्दीन खिलजी द्वारा की गयी थी। • यह विभाग व्यय के कागजातों की देख-रेख किया करता था।
● दीवाने-मुस्तखराज की स्थापना अलाउद्दीन खिलजी द्वारा की गयी। • यह वित्त विभाग के अधीन कार्य करता था ।
• यह विभाग आयकरों का लेखा-जोखा रखता था ।
●'दीवाने-कोही' की स्थापना मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा की गयी ।
• यह कृषि विभाग था, जो कृषि के विकास के लिए कार्य करता था ।
• आरिजे-मुमालिक सैन्य विभाग की स्थापना बलबन द्वारा की गयी ।
• दीवान-ए-आरिज इस विभाग का प्रमुख था ।
• यह विभाग सैनिकों की भर्ती करता था तथा फौजों का निरीक्षण करता था ।
• बरीद-ए-मुमालिक सूचना एवं गुप्तचर विभाग का प्रमुख होता था
• यह डाक चौकी का भी प्रमुख होता था ।
• विभिन्न गुप्तचर और संदेशवाहक इसके अधीन कार्य करते थे ।
• दरबार में भी अनेक कर्मचारी होते थे, जैसे- (1) वकील-ए-दरमहल (2) बारबक (3) अमीर-ए-हाजिब (4) अमीर-ए-शिकार (5) अमीर-ए-मजलिस (6) सर-ए-जहाँदार ।
• वकील-ए-दरमहल राजमहल व सुल्तानों की व्यक्तिगत सेवाओं का प्रबंध करता था। • राजकीय आदेशों का प्रचार, प्रसार एवं क्रियान्वयन इसी के माध्यम से होता था।
• बारबक शाही दरबार की शान-शौकत व मर्यादाओं की रक्षा करता था ।
●अमीर-ए-हाजिब शाही दरबार में पेश होने के तौर-तरीकों को देखता था ।
• अमीर-ए-शिकार शाही शिकार का प्रबंध करने वाला अधिकारी था ।
• अमीर-ए-मजलिस राज दरबार में हाने वाले उत्सवों तथा दावतों का प्रबंध करता था ।
• सर-ए-जहाँदार सुल्तान के व्यक्तिगत अंगरक्षकों का प्रमुख होता था ।
• अमीर-ए-आखूर अश्वशाला का प्रमुख था ।
• शाहन-ए-पील हस्तिशाला का प्रमुख होता था ।
• दीवान-ए-वंदगान गुलामों की देखरेख करता था। इसकी स्थापना फिरोज तुलगक द्वारा की गयी थी।
No comments:
Post a Comment