Monday 24 December 2018

शब्दों के जादूगर:- विमल रॉय


परिणीता" में विमल रॉय ने बंगाल के सादी परिवारिक जीवन की सुगंधित खुशबू से एक परिवार की योग्यता और सार्वभौमिकता को आनन्द से फ़लीभूत किया। " परिणीता " में अशोक कुमार और मीना कुमारी की जोड़ी एक अनिवर्चरनिय है। जब किसी भी भाषाओं में शब्द सीमाओं में घिरकर असहाय और विवश हो जाता है वहाँ पर विमल रॉय ठहर कर तन्मयता से फ़िल्म का अनुसंधान करते है। यह इसलिए भी है कि किसी भी भाषाओं के शब्द का सम्मान करने वाला उनसे बढ़कर कोई फिल्मकार सिनेमा जगत में नही हुआ।
विमल राय का जन्म 12 जुलाई,1909 को सापुर ढाका जिले पूर्वी बंगाल और आसाम में हुआ था। विमल रॉय ने निर्माता निर्देशक बी. एन सरकार की न्यू थिएटर्स (कोलकाता) की कंपनी में बतौर कैमरामैन अपनी फिल्मी जीवन की शुरुआत की थी। स्वभाव से शांत रहने वाले बिमल रॉय को फ़िल्म पत्रकार बुर्जोर खुर्शीदजी करंजिया ने ‘साइलेंट थंडर’ की उपमा दी थी. इतालवी नव-यथार्थवादी सिनेमा से प्रेरित होकर, विटोरियो डी सिका की ‘द साइकिल थीफ’ (1948) देखने के बाद उन्होंने ‘दो बीघा जमीन’ बनाई थी। उन्होंने अपने फिल्मी जीवन में कई पुरस्कार जीते, जिनमें ग्यारह फिल्मफेयर पुरस्कार, दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और कान फिल्म समारोह का अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं। उनकी फिल्म ‘मधुमती’ ने 1958 में नौ फिल्मफेयर पुरस्कार जीते, जो सैंतीस सालों तक रिकॉर्ड था। उन्होंने 1935 ई. में के.एन सहगल की फ़िल्म "देवदास" में सहायक निर्देशक के रूप में काम किया।

विमल रॉय में अपनी फिल्मों में सामाजिक समस्याओं को प्रमुखता से उजागर किया और उसके समाधान का भी प्रयास किया। वे कभी एक विचारधारा में बंध कर नही रहे। कभी वे सामाजिक बुराइयों के मार्मिक सवेदना के द्वारा चित्रण करते थे तो कभी स्त्रियों की पीड़ा और सम्मान जैसी विषयो पर समाज मे फिल्मों के माध्यम से चित्रपटल पर रखते थे।

बिमल रॉय प्रतिभा के अद्भुत पारखी थे। मूल रूप से संगीतकार के रूप में ख्यातिप्राप्त सलिल चौधरी के लेखन की महत्ता को परखा और ‘दो बीघा जमीन’ में उनका उपयोग किया। ‘दो बीघा जमीन’ ने अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में अपना डंका बजा दिया। अगर प्रगतिशील साहित्य की तरह ‘प्रगतिशील सिनेमा’ की चर्चा की जाए, तो बिमल रॉय निस्संदेह इसके पुरोधा माने जाएंगे।

इनको 1953 ई. " दो बीघा जमीन" फ़िल्म के लिए फ़िल्मफ़ेअर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार से अलंकृत किया गया। 1954 – फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – बिराज बहू , 1955 – फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – परिणीता , 1959 – फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – मधुमती , 1960 – फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – सुजाता , 1961 – फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – परख , 1964 – फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – बंदिनी

इस महान व्यक्ति की निधन 8 जनवरी ,1966 को मुम्बई में बीमारी की वजह से हुई, उस वक्त वे "चैताली" फ़िल्म का निर्देशन कर रहे थे।

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