माइक्रोफ़ोन एक प्रकार का ट्रांसड्यूसर का काम करता है जो तरंगो को बदलता है। यानी यह सबसे पहले आवाज़ का पता लगता है कि आवाज़ की सोर्स को खोजता है और पहचानता है फिर ये विधुत सिग्नल को कंप्यूटर तक पहुँचाता है। इसके बाद कम्प्यूटर में लगे कुछ हार्डवेयर यंत्र इस एनालॉग डेटा को डिजिटल डेटा में परिवर्तन कर देता है।
जब हम कुछ बोलते है तो हमारी आवाज़ यानी ध्वनि तरंग एक ऊर्जा में बदल जाती है। फिर वह ऊर्जा माइक्रोफ़ोन में लगे एक छोटे से डायफ्राम से टकराती है। जो प्लास्टिक की बनी होती है। टकराने से यह डायफ्राम हिलने लगती है। और कम्पन्न पैदा होती है।
डायफ्राम से एक कॉइल जुड़ा रहता है जब डायफ्राम हिलती है तो उससे लगे कॉइल भी हिलने लगती है। इसके बाद माइक्रोफोन में लगी एक स्थाई चुम्बक ( Permanent magnet ) एक चुम्बकीय क्षेत्र बनती है जो coil से होकर जाती है. अतः जब coil आगे पीछे घूम रही हो और उस वक़्त वो चुम्बकीय क्षेत्र में आ जाते तो इससे एक विधुत करंट का निर्माण होता है और वो करंट coil से होकर प्रवाहित होने लगता है।
अंत मे यह करंट माइक्रोफोन में लगे एक एम्पलीफायर या साउंड रिकॉर्डिंग डिवाइस से बहता हुआ बाहर निकलता है. तो इस तरह से हमारी आवाज़ एनालॉग डाटा से डिजिटल में परिवर्तित होती है।
◆◆ माइक्रोफ़ोन कई प्रकार के होते है।
A. मूविंग कॉइल माइक्रोफ़ोन
यह माइक्रोफ़ोन विधुत-चुम्बकीय प्रेरण (इंडक्शन) के सिद्धांत पर कार्य करता है।
मूविंग कॉइल डायफ्राम में निम्नलिखित पार्ट रहते है।
1. चुम्बक
2. कॉइल
3. डायफ्राम( पर्दा)
मूविंग कॉइल माइक्रोफोन में तार का एक कॉइल स्थाई चुम्बक क्षेत्र में रखा जाता है जो एक डायफ्रॉम से जुड़ा रहता है। जब ध्वनि तरंग डायफ्रॉम से टकराती है तो डायफ्रॉम हिलता है इसके साथ लगा डायफ्रॉम भी हिलता डुलता है इससे उसमें पास होने वाला चुंबकीय घनत्व में बदलाव आने लगती हैं।और विद्युत् विभव पैदा होती हैं। यही विद्युत् विभव मूल ध्वनि का प्रतिरूप है।
B. रिबन माइक्रोफोन
मूविंग कॉइल माइक्रोफ़ोन की फ्रीक्वेंसी अत्यंत कम रहती हैं क्योंकि इसका कॉइल डायफ्राम यूनिट भारी होती है। इसी कमी को हटाने के लिए रिबन माइक्रोफ़ोन को विकसित किया गया। इसमे कम वज़न का अलुमिनियम रिबन का प्रयोग किया गया है, यही कॉइल का काम करती है। इसमे अलग से डायफ्राम नही होता है।
रिबन:- यह एक हल्की अल्युमिनियम की बनी होती है। इसकी वज़न 0.2 मिलीग्राम, मोटाई 1 माइक्रोन (10`6 m) , लंबाई 20 मिलीमीटर और विड्थ 3 मिलीमीटर होती है। इस रिबन कि सतह लंबाई में कोरियुगेटेड होती है । उसके बाद पूरे एसेंबल को एक पेटिका(case) में रखा जाता हैं जिसका आकार एक चुम्बक की तरह होता है।
रिबन माइक्रोफोन इस तरह काम करता हैं जब ध्वनि तरंगे जब इससे टकराती है तो इसके चुम्बकीय क्षेत्र में तरंगे पैदा करके इसके चुम्बकीय इडक्सन में विभव उत्पन्न होती हैं ।रिबन दोनों तरफ से खुले होने के कारण इसकी गति प्रेशर ग्रेडिएंट पर निर्भर करती हैं जिस कारण इसे प्रेशर ग्रेडिएंट माइक्रोफोन भी कहा जाता हैं। जितना अधिक प्रेशर ग्रेडिएंट होगा उतनी ही अधिक रिबन की वेलोसिटी होगी,इसलिए इसका एक नाम वेलोसिटी माइक्रोफोन भी कहा जाता हैं रिबन का भार कम होने से इसके सिग्नल पर प्रभाव नहीं पड़ता है तथा 12,000 Hz तक का फ्लैट रिस्पोंस देता है जिसके कारण निम्न आवृति में 20 Hz तक का सिग्नल प्राप्त होता है।
जब हम कुछ बोलते है तो हमारी आवाज़ यानी ध्वनि तरंग एक ऊर्जा में बदल जाती है। फिर वह ऊर्जा माइक्रोफ़ोन में लगे एक छोटे से डायफ्राम से टकराती है। जो प्लास्टिक की बनी होती है। टकराने से यह डायफ्राम हिलने लगती है। और कम्पन्न पैदा होती है।
डायफ्राम से एक कॉइल जुड़ा रहता है जब डायफ्राम हिलती है तो उससे लगे कॉइल भी हिलने लगती है। इसके बाद माइक्रोफोन में लगी एक स्थाई चुम्बक ( Permanent magnet ) एक चुम्बकीय क्षेत्र बनती है जो coil से होकर जाती है. अतः जब coil आगे पीछे घूम रही हो और उस वक़्त वो चुम्बकीय क्षेत्र में आ जाते तो इससे एक विधुत करंट का निर्माण होता है और वो करंट coil से होकर प्रवाहित होने लगता है।
अंत मे यह करंट माइक्रोफोन में लगे एक एम्पलीफायर या साउंड रिकॉर्डिंग डिवाइस से बहता हुआ बाहर निकलता है. तो इस तरह से हमारी आवाज़ एनालॉग डाटा से डिजिटल में परिवर्तित होती है।
◆◆ माइक्रोफ़ोन कई प्रकार के होते है।
A. मूविंग कॉइल माइक्रोफ़ोन
यह माइक्रोफ़ोन विधुत-चुम्बकीय प्रेरण (इंडक्शन) के सिद्धांत पर कार्य करता है।
मूविंग कॉइल डायफ्राम में निम्नलिखित पार्ट रहते है।
1. चुम्बक
2. कॉइल
3. डायफ्राम( पर्दा)
मूविंग कॉइल माइक्रोफोन में तार का एक कॉइल स्थाई चुम्बक क्षेत्र में रखा जाता है जो एक डायफ्रॉम से जुड़ा रहता है। जब ध्वनि तरंग डायफ्रॉम से टकराती है तो डायफ्रॉम हिलता है इसके साथ लगा डायफ्रॉम भी हिलता डुलता है इससे उसमें पास होने वाला चुंबकीय घनत्व में बदलाव आने लगती हैं।और विद्युत् विभव पैदा होती हैं। यही विद्युत् विभव मूल ध्वनि का प्रतिरूप है।
B. रिबन माइक्रोफोन
मूविंग कॉइल माइक्रोफ़ोन की फ्रीक्वेंसी अत्यंत कम रहती हैं क्योंकि इसका कॉइल डायफ्राम यूनिट भारी होती है। इसी कमी को हटाने के लिए रिबन माइक्रोफ़ोन को विकसित किया गया। इसमे कम वज़न का अलुमिनियम रिबन का प्रयोग किया गया है, यही कॉइल का काम करती है। इसमे अलग से डायफ्राम नही होता है।
रिबन:- यह एक हल्की अल्युमिनियम की बनी होती है। इसकी वज़न 0.2 मिलीग्राम, मोटाई 1 माइक्रोन (10`6 m) , लंबाई 20 मिलीमीटर और विड्थ 3 मिलीमीटर होती है। इस रिबन कि सतह लंबाई में कोरियुगेटेड होती है । उसके बाद पूरे एसेंबल को एक पेटिका(case) में रखा जाता हैं जिसका आकार एक चुम्बक की तरह होता है।
रिबन माइक्रोफोन इस तरह काम करता हैं जब ध्वनि तरंगे जब इससे टकराती है तो इसके चुम्बकीय क्षेत्र में तरंगे पैदा करके इसके चुम्बकीय इडक्सन में विभव उत्पन्न होती हैं ।रिबन दोनों तरफ से खुले होने के कारण इसकी गति प्रेशर ग्रेडिएंट पर निर्भर करती हैं जिस कारण इसे प्रेशर ग्रेडिएंट माइक्रोफोन भी कहा जाता हैं। जितना अधिक प्रेशर ग्रेडिएंट होगा उतनी ही अधिक रिबन की वेलोसिटी होगी,इसलिए इसका एक नाम वेलोसिटी माइक्रोफोन भी कहा जाता हैं रिबन का भार कम होने से इसके सिग्नल पर प्रभाव नहीं पड़ता है तथा 12,000 Hz तक का फ्लैट रिस्पोंस देता है जिसके कारण निम्न आवृति में 20 Hz तक का सिग्नल प्राप्त होता है।
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