धनुष्टंकार(टिटनस)
धनुष्टंकार(Tetanus) में शरीर ऐठकर धनुष के समान टेढ़ा हो जाता है, रह-रहकर आझेप आते हैं, मांशपेशियों में संकुचन और अकड़न आ जाती है। रोग का आक्रमण हो जाने पर दो दिन से दस दिन के अंदर रोगी का जीवन समाप्त हो सकता है।बहुत कम रोगी ही इस जानलेवा संक्रमण से बच पाते हैं।टिटनस हो जाने पर बचाव मुश्किल हो जाता है, इसलिए पहले ही सुरक्षातःमक उपाय करना चाहिए।।
कारण:- 'क्लास्ट्रीडियम टिटेनि'नामक बैक्टीरिया के संक्रमण से यह रोग होता है।ये जीवाणु जानवरों और उनके मल मे, धूल में तथा गंदे स्थानो में निवास करते है तथा उबालने पर भी नष्ट नही होते।जंग लगे लोहे आदि से चोट लगने पर, गोबर वाले स्थान पर या रास्ते आदि में चोट लगने पर इसका संक्रमण होने की संभावना रहती है।ये जीवाणु घाव या हल्के चोट के स्थान से भी शरीर मे प्रवेश कर जाते हैं।
लक्षण:-
(१).रोग धीरे-धीरे शरीर पर अधिकार जमाता है।जबड़े भिंच जाते है,गर्दन अकड़ जाती है,मुँह खोलने में कठिनाई होती है।
(२).कोई वस्तु खाने-पीने, निगलने में कष्ट होता है।
(३).पीठ में अकड़न, वह पीछे की ओर धनुषाकार मुड़ जाती है , ऐंठनका दौरा पड़ने लगता है।पेट बहुत कड़ा पड़ जाता है।
(४).चेतना रहती है,बेहोशी नही आती।
(५).भौह और मुँह का सिरा बाहर की ओर खींच जाता है,जिससे चेहरा विद्रूप से लगता है।
(६).दौरे के पड़ने का क्रम चालू हो जाता हैं।रोग की तिव्रवस्था में दो दौरौ के बीच का समय कम होता जाता है।पेशियों में कड़ापन आ जाता हैं।
(७).रोगी को छूने,हिलाने- डुलाने से या शोरगुल से आक्षेप का दौरा पड़ जाता है।
(८).आँखे ऊपर चढ़ जाती है।हालत बिगड़ने पर दौरे जल्दी- जल्दी पड़ने लग जाते हैं।
(९).निमोनिया से,अत्यधिक ज्वर से या ह्रदयाघात से ४-५ दिनों में मृत्यु हो सकती है।
धनुष्टंकार के लक्षण मस्तिष्कज्वर और रेबीज के लक्षण से भी मिलते -जुलते है।
उपचार:-
(१).कही भी चोट - चपेट लग जाने पर घाव को हाइड्रोजन पराक्साइड या डेटॉल आदि से धो देना चाहिए और तुरंत टिटनेस का इंजेक्शन लगवा लेना चाहिए।
(२).शीतल , शांत , अंधेरे कमरे मे रोगी को रखना चाहिये।समय नष्ट न करके , योग्य चिकित्सक की देख - रेख में यथाशीघ्र उपचार प्रारम्भ कर देना चाहिये।
धनुष्टंकार(Tetanus) में शरीर ऐठकर धनुष के समान टेढ़ा हो जाता है, रह-रहकर आझेप आते हैं, मांशपेशियों में संकुचन और अकड़न आ जाती है। रोग का आक्रमण हो जाने पर दो दिन से दस दिन के अंदर रोगी का जीवन समाप्त हो सकता है।बहुत कम रोगी ही इस जानलेवा संक्रमण से बच पाते हैं।टिटनस हो जाने पर बचाव मुश्किल हो जाता है, इसलिए पहले ही सुरक्षातःमक उपाय करना चाहिए।।
कारण:- 'क्लास्ट्रीडियम टिटेनि'नामक बैक्टीरिया के संक्रमण से यह रोग होता है।ये जीवाणु जानवरों और उनके मल मे, धूल में तथा गंदे स्थानो में निवास करते है तथा उबालने पर भी नष्ट नही होते।जंग लगे लोहे आदि से चोट लगने पर, गोबर वाले स्थान पर या रास्ते आदि में चोट लगने पर इसका संक्रमण होने की संभावना रहती है।ये जीवाणु घाव या हल्के चोट के स्थान से भी शरीर मे प्रवेश कर जाते हैं।
लक्षण:-
(१).रोग धीरे-धीरे शरीर पर अधिकार जमाता है।जबड़े भिंच जाते है,गर्दन अकड़ जाती है,मुँह खोलने में कठिनाई होती है।
(२).कोई वस्तु खाने-पीने, निगलने में कष्ट होता है।
(३).पीठ में अकड़न, वह पीछे की ओर धनुषाकार मुड़ जाती है , ऐंठनका दौरा पड़ने लगता है।पेट बहुत कड़ा पड़ जाता है।
(४).चेतना रहती है,बेहोशी नही आती।
(५).भौह और मुँह का सिरा बाहर की ओर खींच जाता है,जिससे चेहरा विद्रूप से लगता है।
(६).दौरे के पड़ने का क्रम चालू हो जाता हैं।रोग की तिव्रवस्था में दो दौरौ के बीच का समय कम होता जाता है।पेशियों में कड़ापन आ जाता हैं।
(७).रोगी को छूने,हिलाने- डुलाने से या शोरगुल से आक्षेप का दौरा पड़ जाता है।
(८).आँखे ऊपर चढ़ जाती है।हालत बिगड़ने पर दौरे जल्दी- जल्दी पड़ने लग जाते हैं।
(९).निमोनिया से,अत्यधिक ज्वर से या ह्रदयाघात से ४-५ दिनों में मृत्यु हो सकती है।
धनुष्टंकार के लक्षण मस्तिष्कज्वर और रेबीज के लक्षण से भी मिलते -जुलते है।
उपचार:-
(१).कही भी चोट - चपेट लग जाने पर घाव को हाइड्रोजन पराक्साइड या डेटॉल आदि से धो देना चाहिए और तुरंत टिटनेस का इंजेक्शन लगवा लेना चाहिए।
(२).शीतल , शांत , अंधेरे कमरे मे रोगी को रखना चाहिये।समय नष्ट न करके , योग्य चिकित्सक की देख - रेख में यथाशीघ्र उपचार प्रारम्भ कर देना चाहिये।
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