Thursday, 8 October 2020

रङ्ग बिरंगें सिल्क के धागे कहाँ से मिलते है ?

 



रेशम का उत्पादन, रेशम कीटों के द्वारा होता है। इन कीटों के जीवन-चक्र पाए जानेवाले कैटरपिलर या लार्वा प्यूपा बनने के क्रम में अपनी सुरक्षा के लिए अपने चारों ओर रेशम के धागों से एक कवच का निर्माण करते हैं। जिसे कोकून (cocoon) कहा जाता है। यही कोकून विश्व-प्रसिद्ध सिल्क या रेशम के स्रोत हैं। रेशम कीटों की कई प्रजातियाँ होती हैं जो विभिन्न प्रकार के रेशम उत्पन्न करते हैं और विभिन्न प्रजातियों के कीटों के भोजन के पौधों में भी अंतर होता है। सबसे अधिक प्रिसिद्ध और सामान्य सिल्क मलबरी सिल्क का कीड़ा होता है जिसका वैज्ञानिक नाम बोमबेक्स मोरी ( Bombyx mori) है। यह कीड़ा मलबरी या शहतूत के पेड़ों की पत्तियों का सेवन करती हैं। रेशम की कीड़ो का लार्वा शहतूत की कोमल पत्तियों को खाकर अपनी वृद्धि करती है। इन लार्वा के पेट के निचले भाग में एक विशेष प्रकार के सिल्क ग्लैंड पाई जाती है। इन सिल्क ग्लैंड में एक विशेष तरह का प्रोटीन का निर्माण होता है जिसे फाईब्रोइन कहते है। सिल्क ग्लैंड से एक गाढ़ा लसलसा पदार्थ का निष्कासन होता है जिसे धागे के रूप में लार्वा द्वारा शरीर के चारो तरफ लपेट लिया जाता है। हवा के सम्पर्क में आने से ये धागे कड़े हो जाते है। यही धागे आगे जाकर एक गेंद के समान सरंचना बन जाती है। इसके बाद कोकून में बंद लार्वा में अनेकों परिवर्तन होते है। लार्वा का परिवर्तन प्यूपा के रूप में होता है। यही प्यूपा आगे चलकर वयस्क रेशम का कीट बन जाती है। वयस्क कीट, कोकून में छेद करके बाहर आकर अपने पंख को सुखाकर हवा में उड़ने लगती है। 




प्राकृतिक 

रेशम एक प्रकार के कीड़े से प्राप्त किया जाता है जो शहतूत,महुआ,साल,बेर, अरण्ड,पलास,कुसुम इत्यादि वृक्ष का पत्तियों पर पलता है। एक बार में एक मादा 500 अण्डे देती है। इन अण्डों को 15 ° सेंटीग्रेड से 27°सेंटीग्रेड. तापमान वाले कमरे में रखा जाता है। इन अण्डों से कीड़े निकलकर काफी मात्रा में पत्तियां खा लेने पर अपने मुंह से धागा-सा निकालकर अपने ही चारों ओर लपेटने लगते हैं और अन्तत: यह पूरी तरह धागे से लिपट जाते है तब इन कोयो को गरम जल में डालकर लार्वा को मार डाला जाता है। और रेशम का धागा प्राप्त किया जाता है। यदि ऐसा नहीं किया जाये तो रेशम का कीड़ा रेशम के धागे को काटकर उसे नष्ट कर देता है। रेशम के धागे की कताई की जाती है। इन काते हुए रेशम के धागे से रेशमी वस्त्रों की बुनाई की जाती है। 




मलबरी सिल्क :- शहतूत के पौधे पर पाले गए मलबरी किस्म के रेशम के कीड़े के द्वारा उत्पादित रेशम के धागे सर्वश्रेष्ठ उत्तम होता है। इसका रङ्ग घर पीलापन लिए होता है। 

रेशम के अन्य प्रकार के कीटों में निन्म प्रकार है। 

एरीसिल्क :- अरंडी के वृक्ष के पत्तो पर पलता है। यह बादामी।रङ्ग का खुरदुरा कम चमकीला किंतु नरम होता है। 

तसर सिल्क :- इस प्रकार के रेशम के कीड़े शहतूत के अतिरिक्त ढाक, कुसुम, महुआ, साल और अर्जुन के पौधे के पत्तों पर पलती है। तसर सिल्क के कीड़े एक प्रजनन, द्वि-प्रजनन और त्रि-प्रजनन वाले रेशम के कीड़े है। इनका रङ्ग हल्का पीला होता है। ये घटिया किस्म का सिल्क होता है। 

मूंगा सिल्क :- ये रेशम के कीड़े बेर, अर्जुन इत्यादि पौधे के पत्तों को खाकर पलती है। मूंग सिल्क जंगली प्रकार के सिल्क है। ईसका रङ्ग सुनहरा पीला होता है।

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