हमारे शरीर मे आमतौर पर होने वाले पेट रोग और उनके उपचार में दिया जाने वाले भोजन इस प्रकार है। हमारे भारत वर्ष में अधिकांश लोगों में यह समस्या आये दिन होते रहते है।
■ गैस्ट्राइटिस:- इस रोग में अमाशय की म्यूकस झिल्ली में सूजन हो जाती है, जो तीव्र अथवा काफी पुरानी हो सकती है। इसमें तीव्र सूजन वाले व्यक्ति को पेट दर्द , उल्टियां होने, भूख न लगने और पेट फूलने की शिकायते होने लगती है। ऐसा अटपटा भोजन ,अनियमित भोजन ,तनाव, अत्यधिक गर्म भोजन और अन्य कारणों से हो सकता है।
◆◆◆ ऐसे व्यक्तियों को तरल भोजन:- जैसे - ग्लूकोस का घोल, गर्म करके ठंडा किया हुआ दूध , खनिज -लवण का घोल,फलों का स्वच्छ रस इत्यादि देना चाहिए। भोजन को इक्कठा न देकर कई बार थोड़ा थोड़ा देना चाहिए। लगातार उल्टियाँ होने पर चिकित्सक शिरा अथार्त नस के द्वारा उचित घोल देते है। अमाशय की पुरानी सूजन में अधिक कैलोरी वाला, अधिक प्रोटीन युक्त भोजन, थोड़ी थोड़ी मात्रा में कई बार देते हैं। शराब ,कॉफ़ी, सिगरेट तम्बाकू,पान-मसाला आदि कभी भी नहीं दिया जाना चाहिए।( खान-पान में पहरेज के साथ विटामिन "बी" भी रोगी को चिकित्सक द्वारा दिया जाता है।
■ पेट मे जलन:- छाती के निचले तथा पेट के उपरी भाग में जलन ,आमाशय में अधिक अम्लस्राव तथा उसके भोजन नली में ऊपर लौटने से अथवा ह्रदय रोग से भी हो सकता है। जलन यदि अधिक अम्ल के कारण है ,तो भोजन थोड़ा-थोड़ा कई बार मे लेना चाहिए। एंडोस्कोपी विधि से जांच करने पर ऐसे कई मरीज़ में हर्निया भी मिलती है। ये रोगी प्रायः मोटे होते है। अतः इनको कम कैलोरी वाला भजन देते है। ऐसे लोगों को रात में सोते समय पलंग के सिरहाना ऊँचा रखना चाहिए और भोजन करते समय अधिक जल का सेवन नही करना चाहिए ताकि पेट एक साथ न भर जाए।
■■ पेप्टिक अल्सर:- आमाशय , छोटी आंत के ऊपरी भाग ( (ड्यूओडिनम) अथवा भोजन नली (इसोफेगस) के निचले भाग में बनने वाला घाव है, जिसका मुख्य लक्षण पेट के ऊपरी मध्य भाग में दर्द होता है। रोगियों को पेट मे जलन और खून की उल्टी भी हो सकती है।
◆◆◆◆ 🙅 ऐसे लोगों को भोजन शांत मन से , धीरे धीरे खूब चबाकर कर करना चाहिए। अधिक मिर्च वाले, और अधिक गर्म भोजन नही करे।
■ गैस्ट्राइटिस:- इस रोग में अमाशय की म्यूकस झिल्ली में सूजन हो जाती है, जो तीव्र अथवा काफी पुरानी हो सकती है। इसमें तीव्र सूजन वाले व्यक्ति को पेट दर्द , उल्टियां होने, भूख न लगने और पेट फूलने की शिकायते होने लगती है। ऐसा अटपटा भोजन ,अनियमित भोजन ,तनाव, अत्यधिक गर्म भोजन और अन्य कारणों से हो सकता है।
◆◆◆ ऐसे व्यक्तियों को तरल भोजन:- जैसे - ग्लूकोस का घोल, गर्म करके ठंडा किया हुआ दूध , खनिज -लवण का घोल,फलों का स्वच्छ रस इत्यादि देना चाहिए। भोजन को इक्कठा न देकर कई बार थोड़ा थोड़ा देना चाहिए। लगातार उल्टियाँ होने पर चिकित्सक शिरा अथार्त नस के द्वारा उचित घोल देते है। अमाशय की पुरानी सूजन में अधिक कैलोरी वाला, अधिक प्रोटीन युक्त भोजन, थोड़ी थोड़ी मात्रा में कई बार देते हैं। शराब ,कॉफ़ी, सिगरेट तम्बाकू,पान-मसाला आदि कभी भी नहीं दिया जाना चाहिए।( खान-पान में पहरेज के साथ विटामिन "बी" भी रोगी को चिकित्सक द्वारा दिया जाता है।
■ पेट मे जलन:- छाती के निचले तथा पेट के उपरी भाग में जलन ,आमाशय में अधिक अम्लस्राव तथा उसके भोजन नली में ऊपर लौटने से अथवा ह्रदय रोग से भी हो सकता है। जलन यदि अधिक अम्ल के कारण है ,तो भोजन थोड़ा-थोड़ा कई बार मे लेना चाहिए। एंडोस्कोपी विधि से जांच करने पर ऐसे कई मरीज़ में हर्निया भी मिलती है। ये रोगी प्रायः मोटे होते है। अतः इनको कम कैलोरी वाला भजन देते है। ऐसे लोगों को रात में सोते समय पलंग के सिरहाना ऊँचा रखना चाहिए और भोजन करते समय अधिक जल का सेवन नही करना चाहिए ताकि पेट एक साथ न भर जाए।
■■ पेप्टिक अल्सर:- आमाशय , छोटी आंत के ऊपरी भाग ( (ड्यूओडिनम) अथवा भोजन नली (इसोफेगस) के निचले भाग में बनने वाला घाव है, जिसका मुख्य लक्षण पेट के ऊपरी मध्य भाग में दर्द होता है। रोगियों को पेट मे जलन और खून की उल्टी भी हो सकती है।
◆◆◆◆ 🙅 ऐसे लोगों को भोजन शांत मन से , धीरे धीरे खूब चबाकर कर करना चाहिए। अधिक मिर्च वाले, और अधिक गर्म भोजन नही करे।
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