Monday, 8 October 2018

पता करे आपके ह्रदय के रक्तचाप क्या होना चाहिए

◆ ह्रदय के प्रत्येक धड़कन के समय जो अधिकतम दबाब (प्रेशर) होता है उसे 'सिस्टोलिक प्रेशर' कहते है। जिसमे ह्रदय के निचले भाग के कक्ष में संकुचन होता है। दो धड़कनो के मध्य काल का जो समय होता है। ,उस वक्त जो कम से कम जो दबाब होता है। उसे " डायस्टोलिक प्रेशर " कहते है। इन दोनों के संतुलित दबाब को " ब्लड प्रैशर " कहते है।

◆ आमतौर पर शिशु का रक्तचाप:- 80/50 mm.mercury

◆ युवकों का रक्तचाप:- 120/80 mm. mercury

◆ प्रौढ़ यानी बूढ़ो का रक्तचाप:- 140/90 mm.mercury

होना सामान्य स्थिति है।

■■ इसमे पहली बड़ी संख्या :- सिस्टोलिक और दूसरी छोटी संख्या डायस्टोलिक प्रेशर की सूचक है।

◆◆ सामान्य फार्मूला है कि अपनी आयु के वर्षों में 90 जोड़ लीजिए।

उच्च रक्तचाप के कारण

(क) शारीरिक कारण

1.रक्त वाहिनी शिराओं का मार्ग संकरी हो जाने से या कठोर होने से

2, किडनी में कोई विकार या कोई व्याधि हो जाने से।

3. लिवर के माध्यम से होने वाले रक्त प्रवाह में बाधा उत्पन्न होने से पोर्टल वेन में दबाब उत्पन्न होने के कारण।

■■ रक्त में कोलेसट्रोल नामक तत्व की मात्रा बढ़ जाने से अथार्त सामान्य स्तर से ज्यादा हो जाने से या शरीर मे चर्बी ज्यादा बढ़ने से , मोटापा बढ़ने से, पैतृक प्रभाव से, वृद्धावस्था के कारण आई निर्बलता से, गुर्दे या जिगर की खराबी आदि कारणों से उच्च रक्त चाप होने की स्थिति बनती है।

(ख) मानसिक कारण :- मनुष्य का मन अति सवेंदनशील होता है , उस पर जो व्यक्ति स्वभाव से भाबुक होते है,ऐसे में उनको कोई चिंता ,शोक, क्रोध, ईर्ष्या,या भय का मानसिक चोट पहुँचे तो उनके दिलों की धड़कन बढ़ जाती है।, स्नायविक तंत्र तनाव से भर उठता है। अतः इस प्रकार के अनेकों मानसिक वेगों से बचना आवश्यक है।


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